उद्देश्य: सहयोग से सशक्त समाज की ओर

उद्देश्य

भामा सेना दानवीर भामाशाह के जीवन से प्रेरित होकर “साथ है तो सशक्त है जुड़ेंगे तो बढ़ेंगे” के समभाव से वैश्य समाज के अंतर्गत आने वाले सभी जनमानस की जरूरी आर्थिक, सामाजिक एवं विभिन्न प्रकार की सहायता हेतु बनाई गई टीम है।

इस टीम का उद्देश्य समाज के सामान्य व गरीब नागरिक की आकस्मिक मृत्यु पर उनके परिवारों/आश्रितों को आर्थिक सहायता प्रदान करना, बेटियों की शादी में सहयोग करना, गंभीर बीमारी में उपचार हेतु मदद करना, पढ़ाई लिखाई हेतु सहायता करना, रक्तदान शिविरों का आयोजन करना, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना तथा विभिन्न सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों का आयोजन करना है।

हमारा परिचय

भामा सेना की स्थापना दानवीर भामाशाह से प्रेरित वो प्रभावित होकर किया गया। दानवीर भामाशाह एक प्रसिद्ध योद्धा, दानवीर और महाराणा प्रताप के प्रधान मंत्री थे। उनका जन्म 29 जून, 1547 को राजस्थान के मेवाड़ राज्य में हुआ था।उनके पिता का नाम भारमल था, जो रणथंभौर के किलेदार थे। उनकी माता का नाम कर्पूर देवी था।  भामाशाह जी ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि और अपने सिद्धांतों के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। वे न केवल एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे, बल्कि एक उदार दानवीर और सच्चे देशभक्त भी थे।भामाशाह महाराणा प्रताप के दृढ़ संकल्प और साहस के प्रशंसक थे। जब महाराणा प्रताप मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई में कमजोर पड़ने लगे, तो भामाशाह ने उन्हें अपनी सारी संपत्ति दान कर दी।  बल्किगरीबों और जरूरतमंदों की भी हमेशा मदद की। उनकी उदारता के कारण उन्हें “दानवीर” की उपाधि दी गई भामाशाह सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर मुगलों के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया और अपनी वीरता का परिचय दिया।
भामाशाह की मृत्यु 1600 ई. में हुई। भामाशाह को उनकी दानवीरता, उदारता, राष्ट्रभक्ति और त्याग के लिए आज भी याद किया जाता है।
भामाशाह के जीवन से हमें कई प्रेरणाएँ मिलती हैं:
* हमें अपने सिद्धांतों के प्रति हमेशा वफादार रहना चाहिए।
* हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
* हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
* हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
भामाशाह का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची वीरता और महानता त्याग और बलिदान में है। वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामाशाह सा लाल पला।उस दानवीर की यश गाथा को, मिटा सका क्या काल भला।।

वैश्य शहीद एवं क्रांतिकारी

स्वतंत्रता संग्राम में वैश्य समाज के वीरों की गौरवगाथा

वैश्य वर्ग से ऐसे कई महापुरुष हुए हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी। इन महान सेनानियों ने राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता का अमूल्य उपहार दिया। नीचे कुछ प्रमुख वैश्य शहीदों और क्रांतिकारियों के नाम दिए गए हैं। यदि आप भी किसी ऐसे वीर को जानते हैं जिनका नाम इस सूची में नहीं है, तो कृपया हमसे संपर्क करें।

भामाशाह

संवर्ग उन व्यक्तियों के लिए है जो भामा सेना की मूल भावना से प्रेरित होकर सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहते हैं। ये सदस्य संस्था द्वारा आयोजित विभिन्न सेवा कार्यों जैसे कि ज़रूरतमंदों को आर्थिक सहायता, शिक्षा में सहयोग, रक्तदान, स्वास्थ्य सेवाएं और बेटियों की शादी में मदद जैसे अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। यह संवर्ग समाज की जड़ों से जुड़ा हुआ है और संगठन की नींव को मजबूत करता है। ऐसे सदस्य अपने सहयोग और सेवा के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करते हैं।

भामाशाह विशेष

संवर्ग उन सम्माननीय व्यक्तियों के लिए है जो न केवल संस्था से गहराई से जुड़ना चाहते हैं बल्कि विशेष योगदान देकर नेतृत्व की भूमिका निभाना चाहते हैं। यह वर्ग संगठन को वित्तीय सहयोग, मार्गदर्शन, नीति निर्धारण और विस्तार योजनाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। ये सदस्य संस्था के लिए प्रेरणास्त्रोत होते हैं जो निःस्वार्थ सेवा, उदारता और दानवीरता की भावना को जीते हैं। भामाशाह विशेष संवर्ग सामाजिक परिवर्तन के वाहक होते हैं और संगठन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

वर्ण

वैदिक हिंदू वर्णाश्रम का तीसरा वर्ण

व्यवसाय

कृषि, व्यापार, पशुपालन, और अन्य व्यावसायिक गतिविधियां

प्रमुख जातियां

गुप्ता,अग्रवाल,बरनवाल,तैलिक,ओसवाल, जाट,जायसवाल,मोदनवाल,चौरसिया,कसौधन,रस्तोगी,भूज,भाटिए, यज्ञ सैनी, महावर

प्रसिद्ध वैश्य

हेम चंद्र (दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक), संत कवि सहजो बाई, प्रकाशक मुंशी नवल किशोर, श्याम लाल गुप्ता (झंडा गीत के लेखक)